Sunday, April 4, 2010

*उम्र भर के लिए फ्रन्चैजिंग

*फ्रन्चैजिंग की शुरूआती अवस्था
फ्रन्चैजिंग की शुरुआत होती है ,इंग्लैंड के राजा जोन के ज़माने से, जिन्होंने अपने अधिकारियो को टैक्स वसूलने के लिए फ्रन्चैजिंग दी । एक तत्त्व रूप में इंग्लैंड में मध्य काल में सामने आई ,जब राजा के सहयोग से चर्च के अधिकारी कमाने वाले नागरिको से टैक्स वसूलते थे। उन दिनों में फ्रन्चैजिंग जानी जाती थी "राजा के एक विशेष अधिकार के रूप में"। हलाकि ऐसी फ्रन्चैजिंग को मानना उचित नहीं है । इसके बूम के समय ऐसी व्यवस्था केवल इंग्लैंड तक सिमित थी . चीन में यह व्यवस्था होटल्स में चुकाए जाने वाले 'टेबल किराए ' के समझोते के रूप में प्रचलित थी . जापान में भी यह प्रणाली लोकप्रिय थी , वहा के पूर्व कर्मचारी रोयल्टी के बदले शाखाओ का सञ्चालन कर सकते थे . फ्रन्चैजिंग से जो आज हम समाज पाते है वह तरीका १८०० वी शताब्दी के दोरान इंग्लैंड में शुरू हुआ . बंद घरो के अन्दर शराब निर्माताओ के दुवारा . फ्रन्चैजिंग में यह पहला समझोता था जो लिखित में हो सका . उन दिनों में शराब का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग होता था, इसी दुरूपयोग को लाइसेंस से रोकने की कोशिश की गई. इसीलिए इसका लाइसेंस केवल शराब निर्माताओ के घरो और बार्स को ही मिलता था . अधिक मात्रा में लाइसेंस फ़ीस होने के कारण लोगो के लिए यह व्यवसाय मुश्किल हो चला था . ऐसे समय में शराब निर्माताओ ने आगे आकर लोगो को धन उपलब्ध करवाकर उनसे केवल अपने उत्पाद है बचने को कहा . शराब निर्माताओ उन्हें गरान्तेद वितरण प्रणाली दी . जिसमे केवल उत्पादको की शराब और बार्स को प्रमोट करने की बाध्यता थी . यह तथ्य उत्पादको और वितरको दोनों के लिए ही मुनाफे की बात थी . हलाकि पुराने इंग्लैंड फ्रन्चैजिंग कारोबार में लीड हासिल कर ली थी . लकिन यदि फ्रन्चैजिंग का किसी को ताज मिलेगा तो वह है सयुक्त राज्य अमेरिका , फ्रन्चैजिंग का जनक (पिता ).
फ्रन्चैजिंग का जनक (पिता ).
१८५१ में एक नयी अमेरिकी कंपनी ने पाया की बिक्री सतोरेस और ग्राहक दूर -दूर होने के कारण बिक्री के बाद भी सेवा देना कठिन है .कंपनी में तय किया की वह अपने बिक्री बल और साधनों का अधिकतम उपयोग किये बिना वह फ्रन्चैजिं बाजार में उतरेगी . कंपनी ने व्यक्तिगत रूप से उत्पाद बिक्री के विशेष अधिकार लोगो को देना शरू कर दिया . इसके लिए कंपनी ने लोगो अलग अलग तरीको से आकर्षित किया . इस तरह यह एक वितरक और निवेशक के बीच हुआ पहला क़ानूनी करार था . कंपनी फ्रन्चैजिंग का नेटवर्क स्थापित करने में कामयाब हो गई . कोई भी ६५ $ बिक्री शेत्र के लिए देकर उत्पादों की पुन बिक्री का अधिकार प्राप्त कर सकता था . वह कंपनी थी ' सिंगर ' और वह उत्पाद था 'सिलाई मशीन '. उन विशेष बिक्री शेत्रो में फ्रन्चैजिं सिस्टम उन्हें आज्ञा देता था , बिक्री का विशेषअधिकार , मशीन की सर्विसिंग की . यह तरीका सफलता पूर्वक काम करने लगा . कंपनी ने २० शताब्दी की शुरुआत में फ्रन्चैजिंग के बड़े बाजार में प्रवेश किया . एस .एस ऍम .(सिंगर सिलाई मशीन ) के प्रमुख 'इसाक सिंगर' को वर्तमान फ्रन्चैजिंग सिस्टम को बनाने और मोर्डेन समझोते की नीव रखने हेतु याद किया जाता है . बाद में यही व्यवस्था व्यवसाय नीति में परिवर्तित ही गया , जो आज की वितीय परिद्रश्य में दिखाई देता है. बाद में चलकर कई लोगो ने इसी सिस्टम को अपनाया / फोलो किया

Monday, December 21, 2009


डाक्टर कविता किरण की रचना , केयर टू केयर की प्रमुख डाक्टर मोना कपूर का जीवन , डाक्टर जयप्रकाश गुप्त का हिंदी समीक्षा आलेख ,केशव जांगिड की कहानी विपिन चोधरी का नारी की पीढ़ा पर आलेख , मंजरी जोशी से एक मुलाकात ,भारतीय मीडिया पर विनोद विप्लव का व्यंग्य , और प्रभाष जोशी ,तसलीमा नसरीन की रचनाये .....
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प्रति मंगवाए या सदस्यता ले ॥ मूल्य मात्र ..१० /-
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मेल - मनोरंजन कलश @ जीमेल .कॉम

मनोरंजन कलश ,जनवरी (नवचेतना विशेषांक )


डाक्टर कविता किरण की रचना , केयर टू केयर की प्रमुख डाक्टर मोना कपूर का जीवन , डाक्टर जयप्रकाश गुप्त का हिंदी समीक्षा आलेख ,केशव जांगिड की कहानी विपिन चोधरी का नारी की पीढ़ा पर आलेख , मंजरी जोशी से एक मुलाकात ,भारतीय मीडिया पर विनोद विप्लव का व्यंग्य , और प्रभाष जोशी ,तसलीमा नसरीन की रचनाये .....

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Sunday, December 20, 2009

कविता - मेरा बसंत
मुस्कुराती कलियों के मेलो में ,
मकरंदित पुष्पों के झूलो में ,
भ्रमर से तितली के अनुबंधों में ,
प्रीत - स्नेह के नवबंधो में ,
आ रहा है मेरा बसंत।



फाल्गुनी हवा की बयार में ,
दहकते पलाश की बोछार में ,
धरा से गगन के कटबंधो में ,
सोंधी अमलताश की सुगंधों में ,
गुनगुना रहा है मेरा बसंत ।



पीत - मुदित सरसों के पुष्पों में ,

गुलमोहर की मधुकर डालो में ,
उन्मुक्त , उन्मादक विलासों में ,
नवगीतों ,बधाई भरे उल्लासो में ,
महक रहा है मेरा बसंत ।

Monday, November 23, 2009

अनमोल रिश्ता


पिता संतति का सम्बन्ध है जो ,
पानी - पेड़ में अनुबंध है वो ।

जनक - संतान में सम्बन्ध है जो ,
पालक - आश्रयी का करबंध है वो ।

जीवन उत्पत्ति की करताल है ,
सयमेव झंकृत ताल है ।


आदर और स्नेह का मध्यस्थ है,
अन्य संबंधो से तटस्थ है ।


वो तो है भवजीवन के आरम्भ
का शंखनाद ,
पोषक और पिपासु के
मध्य का अनुनाद ।


संगीत और संगति के
मध्य की लय है ,
आशा और अनुरोध
का विलय है
- केशव जांगिड (कवि और लेखक )
(बालसाहित्य बाल क्लब से पुरुस्कृत - २००८)






माँ की वेदना






डगमगाती बेटी जब गिर जाती है ,
माँ डर जाती है ,
सोचती है ,
कही चोट का निशा ना बन जाए ,
विवाह की संभावनाए ना
घट जाए ।

लड़की किसी से नही लडती
जानती है ,
पराजय पर उसका ही एकाधिकार
है ।

इस पुरूषवादी समाज में हर तरफ
उसकी ही हार है ।
झूलती है वह सुख, दुख
के झूले में ,
बचाती है संस्कार, मूल्य ,अस्मिता
डरती है एक दिन वह खुद
बेटी को जन्म ना दे ,
उसे बचाने के चक्कर में
गिरने से ,
अपनी मर्यादा ना खो दे ।

समझाती है माँ बेटी को
ना समझ खुद को कमजोर,
एक कोशिश पुनः कर पुरजोर
संसार अवश्य चूमेगा तेरे कदम
आगे बढ़ ,
है तुझमे दम।

- केशव जांगिड ( कवि और पत्रकार )
(बाल साहित्य बाल क्लब से सम्मानित -२००८ )

कविता - बेटी





बाबुल की आन और शान है बेटी ,
इस धरा पर मालिक का वरदान
है बेटी ,

जीवन यदि संगीत है तो सरगम
है बेटी ,
रिश्तो के कानन में भटके इन्सान
की मधुबन सी मुस्कान है बेटी,


जनक की फूलवारी में कभी प्रीत
की क्यारी में ,
रंग और सुगंध का महका गुलबाग
है बेटी ,

त्याग और स्नेह की सूरत है ,
दया और रिश्तो की मूरत है
बेटी ,


कण - कण है कोमल सुंदर
अनूप है बेटी ,
ह्रदय की लकीरो का सच्चा
रूप है बेटी ,

अनुनय , विनय , अनुराग
है बेटी ,
इस वसुधा और रीत और प्रीत
का राग है बेटी ,

माता - पिता के मन का
वंदन है बेटी ,
भाई के ललाट का चंदन
है बेटी ।
- केशव जांगिड(कवि और लेखक )
(बाल साहित्य बाल क्लब से सम्मानित -२००८ )

बचालो हिन्दी को ?


हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी अस्तित्व खोती जा रही है ,लोग तेजी से हिन्दी को भूल कर इंग्लिश के वशीभूत हो गए है , आए एक प्रयास करे ,हिन्दी बचाओ अभियान में हिस्सा ले , अपनी पोस्ट हिन्दी में पोस्ट करे , केशव जांगिड (लेखक और पत्रकार) के सदसंकल्पों से एक ब्लॉग का सूत्रपात किया गया है । फसबूक लिंक से जुड़े ब्लॉग हेतु '' केशवजांगिड@ जीमेल.कॉम '' पर साहित्यिक रचनाए पोस्ट कर मोहिम में साथ दे .... बालसाहित्य बालक्लब

जागरण गीत


लिया तिरंगा हाथो में ,
अपना लहू बहा कर ,
भारत को आजाद कराया
,
अपना शीश कटाकर ।

खुदीराम चढ़ा सूली पर ,
बिस्मिल ने फांसी पाई ,
भगत सिंह ने क़ुरबानी दी ,
लाला ने लाठी खायी ।

गाँधी जी ने किया आहवान ,
विदेशी होली जलाई,
पंचशील अपना कर नेहरू ने ,
भारत को नई रहा दिखाई।


था वो सागरमल गोपा ,
अग्नि पथ शहीदी पाई ,
थी रानी मर्दानी वो ,
जिससे गोरो ने मुंहकी खाई ।

मंगल ने विद्ध्रोह फूंका,
सावरकर ने चेतना जगाई ,
इन्ही सत्याग्रहों से हमने ,
मातृभूमि आजाद कराई ।

हुए साठ उन को ,
गाथाये जो वीरो ने बनाई ,
सोचो जरा अपने मन में ,
क्या सच्ची आजादी हमने पाई ।

कभी आतंकी सांसद पर ,
कभी स्वाभिमान पर वार करे ,
जयपुर , दिल्ली , बंगलुरु में
जनता हाहाकार करे ।

कश्मीरी माता बहनों से ,
आतंकी खिलवाड़ करे ,
ऐसा नृशंस तांडव देख ,
भारत माँ चीत्कार करे ।

कभी हमारी सीमाओं पर ,
शत्रु दो से चार बने ,
ऐसे में हम जगतगुरु ,
क्यो ना प्रतिकार करे ।

उत्तर ,दक्षिण , पूरब ,पश्चिम ,
बारूदों से दहले है ,
भारत माँ के वीर सपूतो ,
अब हम नहले पर दहले है ।

भारत माँ की रक्षा में ,
अर्पित करे शोर्य , तरुणाई ,
दुष्टो का करे दमन हम ,
ले विजय की अंगडाई ।

लोहपुरूष से बने हम ,
गाँधी से बने आहिंसावादी,
काम , क्रोध , वासनाए त्यागे ,
पहने हम स्वदेशी खादी ।

सदा -सर्वदा करे अंत,
भ्रष्टाचारी दानव का हम ,
शान्ति के अणु परमाणु बन ,
दीन - दुखियों के बने मरहम

बुराईया अब भारत छोड़ो ,
आओ युवाओ भारत जोड़ो ,
सत्य , संकल्प , सेवा ,सहयोग ,
तत्वों से भारत को जोड़ो ।

देशप्रेम की खातिर प्यारो ,
दुश्मन से तुम लड़ जाओ ,
मातृभूमि की रक्षा में ,
मस्तक अमर कर जाओ ।

तभी हमारी यह वसुधा ,
कर्मभूमि बलवान बनेगी ,
भारत भाग्य विधाता होगा ,
दुनिया हमें नमन करगी ।

केशव जांगिड (कवि और पत्रकार )
(बाल साहित्य बाल क्लब से पुरुस्कृत -2008)


























रविवार, २२ नवम्बर २००९

एक संदेश


ईश्वर ने कहा -
तू करता है वो जो तू चाहता है ,
होता है वो जो में चाहता हू।
तू वो करने लगे जो में चाहता हू ,
तो होगा वो जो तू चाहता है ।
(स्वर्गीय श्री दिनेश कपूर की पंक्तिया )

बुधवार, १८ नवम्बर २००९

कैसी विडंबना ?

आज एक तरफ तो देश गरीबी और विदेशी ताकतों से लड़ रहा है, और राज ठाकरे जैसे लोग देश के टुकड़े करने में लगे है । मराठी मानुष के नाम पर अलगाव पैदा कर रहा है । आज केन्द्र सरकार क्यो चुप है , एक उग्र साम्प्रेदायिक तत्व संविधान का मजाक बना कर खुलेआम हिंसा पर आमादा है , महारास्ट्र में कांग्रेस केवेल मूक दर्शक बनकर राजनितिक रोटिया सेक रही है , दूसरी तारफ देश की सुरक्षा के लिए चीन , पाकिस्तान से लोहा लेने में वा वाही बटोरने में लगी हुई है । सबसे पहले देश बचा ले , तब बाहर वालो की चिंता करंगे । कौन समझाये हमारी लोकतान्त्रिक सरकार ......
-- केशव जांगिड ( लेखक और पत्रकार )